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हैपी प्रामिजडे

jago bhai jago
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दूसरेब्लागरोंजैसेनिशाजी,टिम्सीजी,दिनेशआसितकजी,अबोधबालकजी,अल्काजी,राजकमलजी,सूर्यबालीजी,अलीनजी,सुमितजी आदि सभी वरिष्ठ व श्रेष्ठ ब्लागरों के लेखों,कविताओं,विश्लेषणों व प्रतिक्रियाओं को पढकर मुझे भी लगता है कि मै भी कुछ लिखूँ किन्तु पता नहीं क्यों कीबोर्ड छूते ही विचार मन में घूमते रह जाते हैं परन्तु बाहर अभिव्यक्त नहीं कर पाता। अभी कल ही इसी मंच पर वैलेन्टाइनडे पर एक लेख पढा,पढकर मुझे भी कुछ लिखने की इच्छा हुई क्योंकि लेख में इतने सुन्दर ढंग से प्रेम का विश्लेषण किया गया है कि पढने के बाद से अब तक मेरे दिमाग में सिर्फ यही गूँज रहा है कि लोगों को वैलेन्टाइनडे मनाने की आवश्यकता ही क्यों महसूस होती है,प्रेम तो शाश्वत होता है,प्रेम शब्दरहित होता है,प्रेम तो प्रकृति के कण-कण में समाहित है,प्रेम तो उपहार के रूप में हमें प्रकृति से स्वयं ही मिला हुआ है तो फिर इसके इजहार की आवश्यकता शायद तभी पडेगी जब प्रेम (किसी भी रूप में,किसी भी मात्रा में) कलुषित होगा।प्रेम वह मूलभवना है जो स्वयं प्रकाशित है,स्वयं –ष्टव्य है और सतत प्रवाहशील वह अविरल धारा है जो क्षण प्रतिक्षण प्र—ति के सामीप्य से महसूस की जा सकती है। इस भवना से पशु पक्षी भी ओतप्रोत हैं(किन्तु सर्वाधिक विकसित प्राणी की संज्ञा के बावजूद भी मानव को ओतप्रोत होने में अभी समय लगेगा? ) और शायद इसीलिए प्रेम की भाषा वह भी समझते हैं।कल-कल करती नदियों से,पक्षियों की चहचहाट से,हवा की सरसराहट से,सबको आश्रय देती वसुधा से, सूर्य की रोशनी से,चाँद की शीतलता सहित प्र—ति के हर रूप से प्रेम के भावनामय संदेश को हर पल हर दिन महसूस किया जा सकता है।इसीलिए एैसी सर्वव्याप्त मूलभावना को न तो समय के किसी बन्धन में बाँधने की आवश्यकता है और न ही कोई औचित्य और न ही यह किसी विशेष दिन का मोहताज है। जरूरुत है सिर्फ एैसे कार्य करने की जिनसे शुभतारूपी प्रेम के सर्वत्र प्रसार में कोई अवरोध न उत्पन्न हो। अत: हमें वैलेन्टाइनडे नहीं बलिक वैलेन्टाइनमोमेन्ट हर पल मनाना चाहिए कदाचित तभी हम अपने लोक और परलोक दोनो सुधार सकेगें। साथियों मेरे पास आज आए एक एस0एम0एस0 के अनुसार आज ‘प्रामिसडे’है, इसको पढते ही मेरे मन में विचार आया कि क्यों न अपने आप से एक वादा करें कि कुछ भी हो अगर हर वक्त नही ंतो कम से कम यथासम्भव अधिकतम सीमातक सत्य ओर प्रेम की राह में लाख दुश्वारियाँ होने के बावजूद चलने का प्रयत्न तो करें। मेरा मानना है कि अगर हम अपने वादे पर खरे उतरे तो वह दिन दूर नहीं होगा जब रामराज्य की कल्पना साकार होती हुई महसूस होने लगेगी और तभी शायद ‘हैपी प्रामिजडे’ की सार्थकता सही अथो में सिद्ध होगी। अत: आप सभी सुधीजनों को भी ‘हैपी प्रामिजडे’।

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