jago bhai jago
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आदरणीय महोदय
आपने सही लि£ा है कि राजनीति में परिवारवाद नहीं हाना चाहिये। वैसे तो जितने भी शब्दों में बाद में ‘वाद’ जोडा जाता है जैसे जातिवाद; धर्मवाद; क्षेत्रवाद; भाषावाद आदि और जब इनको व्यवहार में लाया जाता है तो परिणाम अच्छे नहीं आते हैं। अत: मेरे विचार से सभी कार्यक्षेत्रों में ‘वाद’ से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिये। रही बात पार्टियों की तो उनमे से कोई भी जनता के हितों से सीधे सरोकार नहीं रखती है बलिक केवल दिखावा करती है और अपने हितों के सापेक्ष ही कार्य करती है। चुनाव का उम्म्ीदवार कोई भी हो मेरे विचार से वोट देने के पहले कुछ लोगों का समूह बनाकर यदि उससे वोट मागते समय क्रासक्वैश्चन किये जाय तो ये तथाकथित समाजसेवी कुछ सीमातक सब्जबाग दिखाना शायद बंद कर दें और सरकारी खर्चे पर चुनाव कराये जाने के आपके विचारों से मै भी सहमत हू।
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